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श्रद्धा और सबूरी यही तो जीवन का मूलमंत्र है - (Shraddha and Saburi)



 


साईं बाबा ने श्रद्धा और सबूरी के रूप में दिया है। जीवन जीने का मूलमंत्र है


श्रद्धा हमें सही राह पर लाती है और संयम पथभ्रष्ट नहीं होने देता। यही तो जीवन का मूलमंत्र है, जो हमें शिरडी के साईं बाबा ने श्रद्धा और सबूरी के रूप में दिया है।


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विजयादशमी के दिन शिरडी के संत साईंबाबा का महाप्रयाण दिवस मनाया जाता है। बाबा ने हमें श्रद्धा और सबूरी (सब्र) के रूप में ऐसे दो दीप दिए हैं, जिन्हें यदि हम अपने जीवन में ले आएं, तो उजाला पैदा कर सकते हैं। श्रद्धा हमेशा व्यक्ति को सही रास्ते की ओर ले जाती है, वहीं संयम से वह उस रास्ते पर टिका रह पाता है।

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जब हम अपने लक्ष्य से भटकने लगते हैं, तब संत ईश्वर के संदेशवाहक बनकर सही मार्ग दिखाते हैं। संतों की श्रृंखला में शिरडी के साईं बाबा का नाम विख्यात है। 15 अक्टूबर 1918 को विजयादशमी के पर्व पर साईंबाबा ने महाप्रयाण किया, किंतु उनका उपदेश श्रद्धा और सबूरी आज भी हमें जीवन जीने की कला सिखा रहा है।

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श्रद्धा ईश्वर तक पहुंचने की सीढ़ी है। शास्त्रों में लिखा है कि भक्त को भगवान से मिलाने की क्षमता केवल श्रद्धा में ही है। ईश्वर आडंबर से नहीं, बल्कि सच्ची श्रद्धा से ही सुलभ होता है। श्रीमद्भागवद्गीता (4-39) में कहा गया है- श्रद्धावांल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेंद्रिय:। ज्ञानं लब्धवा परां शांतिमचिरेणाधिगच्छति।। अर्थात श्रद्धावान मनुष्य जितेंद्रिय साधक बनकर तत्वज्ञान प्राप्त करता है और तत्काल ही भगवत्प्राप्ति के रूप में परम शांति पा लेता है।

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श्रद्धा के बिना विवेकहीन व्यक्ति संशयग्रस्त होकर पथभ्रष्ट हो जाता है। गीता के अनुसार - अज्ञश्चाश्रद्धानश्च संशयात्मा विनश्यति। नायं लोकोस्ति न परो न सुखं संशयात्मन:।। अर्थात श्रद्धारहित विवेकहीन संशययुक्त मनुष्य परमार्थ से पथभ्रष्ट हो जाता है। ऐसे मनुष्य के लिए न यह लोक है, न परलोक है और न ही सुख है।

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यह सच है कि श्रद्धा की शक्ति के बिना मानव शंकाओं में भटककर विवेकहीन हो जाता है। तब वह जीवन के लक्ष्य से दूर हो जाता है। यह श्रद्धा सभी व्यक्तियों में समान रूप से नहीं हो सकती, क्योंकि यह उनके अंत:करण के अनुरूप होती है। गीता (17-2) इस बारे में प्रकाश डालती है- त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा। सात्विकी राजसी चैव तामसी चेतितां श्रृणु।। अर्थात मनुष्य के स्वभाव से उत्पन्न श्रद्धा सात्विक, राजसिक और तामसिक तीन प्रकार की होती है। कर्र्मो के संस्कार मनुष्य का स्वभाव बनाते हैं। अपने भिन्न स्वभाव के कारण मनुष्य सात्विक, राजसिक और तामसिक होता है। अर्थात श्रद्धा मनुष्य के स्वभाव के अनुरूप ही होती है।


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ऋषियों ने कहा है कि जिसकी जैसी श्रद्धा होती है, उसे उसी के अनुरूप परिणाम मिलता है। श्रद्धा ही पत्थर को शिव बना देती है। श्रद्धा भावनात्मक संबंधों की संजीवनी है।

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साईंबाबा का दूसरा उपदेश है - सबूरी यानी सब्र या संयम। आज हमारे भीतर संयम की ताकत बहुत कम हो गई है। हम अपने हर काम का परिणाम तत्काल चाहते हैं। हम अपनी हर इच्छा तुरंत पूरी होते देखना चाहते हैं। संयम खो देने पर बड़ा योगी भी पतित हो जाता है। हमें अपने मन, वचन और कर्म तीनों पर संयम का अंकुश लगाना चाहिए। गीता में संयम का पाठ पढ़ाते हुए यह संकेत दिया गया है कि इंद्रियां बड़ी चंचल हैं। इनको जीतना अत्यंत कठिन है, किंतु यह दुष्कर कार्य संयम के बल से किया जा सकता है।




हमारी अधिकांश समस्याएं संयम के अभाव से ही उत्पन्न हुई हैं। संयम खो देने पर महायोगी भी साधारण बन जाता है। संतों ने हमेशा यही शिक्षा दी है कि सब्र का फल मीठा होता है, अत: हर एक को संयमशील बनना चाहिए। संयम का कवच हमें विपत्तियों के प्रहार से बचाता है। साईं बाबा ने श्रद्धा के साथ सबूरी को जोड़कर हमें ऐसा ब्रहृामास्त्र दे दिया है, जिससे हम हर स्थिति में निपट सकते हैं। यह उपदेश मानव के लिए सफलता का वह महामंत्र है, जो हर युग में प्रासंगिक एवं जनोपयोगी बना रहेगा।


*🌹🙏🌹अनंत कोटि ब्रह्माण्ड नायक राजाधिराज योगिराज

परब्रह्म श्री सचिदानंद सतगुरु साईनाथ महाराज की जय 🌹🙏🌹*             *

🌹🙏🌹Anant koti Brahmaand nayak Rajadhiraj yogiraj 

Parbraham shri Sachidanand Sadguru Sainath Maharaj Ji ki Jai

*🌹🙏🌹🙏 Saidatt



साईं बाबा Status In HINDI For Whatsapp


साईं बाबा Status In HINDI For Whatsapp
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साईं नाम लेते रहो बिगड़ा काम संवर जाएगा तुमको पता भी नहीं चलेगा 

और बुरा वक्त गुजर जाएगा।

                                         अकेले चलना सिख लो जरुरी नहीं जो आज तुम्हारे साथ है 

                                                              वो कल भी तुम्हारे साथ रहे ॥


सुकून की तलाश में हम कहां कहां मगर 
                                  
                                              जो सुकून SAI तेरे दीदार में है कहीं ओर कहां भटके




SAINATHAY NAMHAA
उसकी इजाजत के बिना पुत्ता भी नहीं हिलता और ये बात इंसान समझ कर भी नहीं समझता
SAIDATT !! ॐ साई राम !!


 


जब मैं बुरे हालातों से घबराता हूँ

तभी साई की आवाज़ आती है

रुक मैं अभी आता हूँ


साईंनाथाय नमः
श्रद्धा रखना और सब्र से काम करते रहना
ईश्वर जरुर भला करेगा। साईं दत्त





एक फूल भी 
  अक्सर बाग़ सजा देता है.....
  एक सितारा
   संसार की चमका देता है....
  जहाँ दुनिया भर के रिश्ते  
   काम नहीं आते

    वहाँ मेरा साई 
    जिन्दगी सवार देता है..
*आज के श्री साई बाबा दर्शन*
       ॐ साई राम जी🙏




साईंनाथाय नमः
saidatt
ॐ साईराम
सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना...




मैं अच्छे इन्सानों का इम्तिहान लेता हूँ पर साथ कभी नहीं छोड़ता




ॐ साईराम
रोज़ गलती करता हूं, तू छुपाता है अपनी बरकत से,
 मैं मजबूर अपनी आदत से, तू मशहूर अपनी रहमत से!







जिंदगी से एक ही बात सीखी है,, ईश्वर से उम्मीद लगाने वाला हर शख्स कामयाब होता है !







श्री साईनाथ महाराज आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें
श्रद्धा
सबूरी
सबका मालिक एक
अनंत कोटी ब्रम्हांडनायक राजाधिराज योगीराज
 परं ब्रम्हं श्री सच्चिदानंद सदगुरु श्री साईनाथ महाराज





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श्री कृष्णावेणी उत्सव 2023 (श्री क्षेत्र नरसोबावडी)



"मच्चिता चिंती साची तू वाडी नरसोबाची असा श्री क्षेत्र नरसोबावाडीचा अलौकिक महिमा प्रेमभराने गाणारे व श्री क्षेत्र नृसिंहवाडीचे आम्ही आहोत" असे स्वानंदाने सांगणारे श्रीमत् प. प. वासुदेवानंद सरस्वती टेंब्ये स्वामी महाराज वाडी क्षेत्री एकदा वास्तव्यास असताना आपल्या अतिशय प्रिय पुजारी वाडीकर भक्तजनांना श्रीकृष्णा-पंचगंगेच्या अनादि संगमावर श्रीकृष्णा मातेचे अगाध माहात्म्य आपल्या देववाणीतून प्रकट करीत असतानाच एक "कनकी नामक देववृक्षाचे श्रीकृष्णावेणीचे अमूर्त स्वरूप वाहत आल्याचे त्रिकाल ज्ञानी महाराजांच्या ऋतंभरा प्रज्ञेस ज्ञात झाले भावावस्था प्राप्त महाराजांनी एका भक्ताकरावी या कृष्णेच्या अमूर्त स्वरूपास आपल्याजवळ आणले. प. प. स्वामींना त्रिपुरसुंदरी श्रीकृष्णावेणी मातेने जे मनोहरी दर्शन दिले त्याप्रमाणे या 'श्रीकृष्णावेणीच्या' अमूर्त स्वरूपाला अतिशय सुंदर असे मूर्ती स्वरूप देण्यात आलेतीच ही आपली सर्वांची जीवनदायिनी श्री कृष्णावेणी माता...

श्री दत्तात्रेयांचे द्वितीय अवतार श्रीमन नृसिंहसरस्वती स्वामी महाराजांच्या बारावर्षांच्या तपःसाधनेने पावनमय झालेल्या कृष्णा-पंचगंगा संगमावरील श्री नृसिंहवाडी क्षेत्री प.प. थोरले (स्वामी (टेंब्ये स्वामी) महाराजांच्या सत्यसंकल्पाने श्रीकृष्णावेणी मातेचा उत्सव होत आहे.

श्रीकृष्ण वेणी मातेचा उत्सव वेळापत्रक खालील प्रमाणे 

|| श्री कृष्णावेणी प्रसन्न ||

स.न.वि.वि. प्रतिवर्षाप्रमाणे

श्री कृष्णावेणी उत्सव - २०२३ श्री क्षेत्र नृसिंहवाडी येथे मिती माघ शु. ७ (रथसप्तमी) शनिवार दि. २८ जानेवारी ते माघ कृ. ॥। १ सोमवार दि. ६ फेब्रुवारी २०१३ अखेर १० दिवस साजरा होणार आहे.

उत्सव प्रसंगी होणारे नित्य कार्यक्रम
सकाळी ७.०० वा.
सकाळी ८.०० वा. : ऋक्संहिता, ब्राह्मण आरण्यक्, श्री गुरुचरित्र, कृष्णा माहात्म्य,

श्रीमद् भागवत, श्रीसूक्त, रुद्रैकादशिनी, सप्तशती इ. पारायणे आरती
दुपारी १:०० वा.
: श्री. एकवीरा भगिनी मंडळ, श्री क्षेत्र नृसिंहवाडी यांचे
दुपारी ३:०० ते ४:००
"श्री कृष्णालहरी पठण
सायं. ४.०० ते ५.०० वा.
: वे. मू. श्री. हरी नारायण पुजारी (चोपदार), नृसिंहवाडी यांचे 'श्री कृष्णालहरी पुराण" 
रात्री ८.०० वा.पूजा
 अर्चा : आरती व मंत्रपुष्प

विशेष कार्यक्रम

शनिवार, दि. २८ जानेवारी २०२३
सायं. ५ वा.
श्री. प्रसाद शेवडे, देवगड यांचे 'गायन'
रात्री ९:३० वा. ह. भ. प. श्री. नंदकुमारबुवा कर्वे, पनवेल यांचे 'सुश्राव्य कीर्तन'

रविवार, दि. २९ जानेवारी २०२३
सायं. ५ वा. श्री. भाग्येश मराठे, मुंबई यांचे 'गायन'
रात्रौ. ९:३० वा. ह.भ.प.श्री.नंदकुमारबुवा कर्वे, पनवेल यांचे 'सुश्राव्य कीर्तन'

सोमवार, दि. ३० जानेवारी २०२३
सायं. ५ वा.
सौ. मृणाल नाटेकर - भिडे, मुंबई यांचे 'गायन' रात्री ९:३० वा. ह. भ. प. श्री. नंदकुमारबुवा कर्वे, पनवेल यांचे 'सुश्राव्य कीर्तन'

मंगळवार, दि. ३१ जानेवारी २०२३
श्री. सुभाष परवार, गोवा यांचे 'गायन'
सायं. ५ वा. रात्रौ ९:३० वा. ह. भ. प. श्री. नंदकुमारबुवा कर्वे, पनवेल यांचे 'सुश्राव्य कीर्तन'

बुधवार, दि. १ फेब्रुवारी २०२३
सकाळी 8 वा. " श्री विष्णुयाग"
सायं. ५ वा. ह. भ. प. श्री. नंदकुमारबुवा कर्वे, पनवेल यांचे 'सुश्राव्य कीर्तन'
रात्रौ ८ वा. " मंत्रजागर " रात्री ९:३० वा. " गर्जली स्वातंत्र्य शाहिरी " सादरकर्ते आचार्य शाहीर हेमंतराजे पु. मावळे आणि सहकारी, (नानिवडेकर- हिंगे मावळे शाहिरी घराण्याचे उत्तराधिकारी) पुणे

गुरुवार, दि. २ फेब्रुवारी २०२३
सायं. ५ वा. ह. भ. प. श्री. नंदकुमारबुवा कर्वे, पनवेल यांचे 'सुश्राव्य कीर्तन रात्रौ ९:३० वा. पं. श्री. शौनक जितेंद्र अभिषेकी, पुणे यांचे 'गायन'

शुक्रवार, दि. ३ फेब्रुवारी २०२३
सायं. ५ वा.
ह. भ. प. श्री. नंदकुमारबुवा कर्वे, पनवेल यांचे 'सुश्राव्य कीर्तन' रात्रौ ९:३० वा. 'नाम घेऊ नाम गाऊ' भक्तिगीत गायन संकल्पना संगीत दिग्दर्शन- प्रस्तुती श्री. प्रदीप धोंड - पिंगुळी, कुडाळ. (मुंबई)

शनिवार, दि. ४ फेब्रुवारी २०२३
सायं. ५ वा. ह. भ. प. श्री. नंदकुमारबुवा कर्वे, पनवेल यांचे सुश्राव्य कीर्तन रात्री ९:३० वा. पं. श्री. रघुनंदन पणशीकर, पुणे यांचे 'गायन'

रविवार, दि. ५ फेब्रुवारी २०२३
सायं. ५ वा. ह. भ. प. श्री. नंदकुमारबुवा कर्वे, पनवेल यांचे 'सुश्राव्य कीर्तन'
रात्रौ ८ वा. श्रीमद् जगदुरु शंकराचार्य, करवीर पीठ यांचे आशीर्वचन " रात्री ९:३० वा. कु. मृदुला तांबे, पुणे यांचे 'गायन'






सोमवार, दि. ६ फेब्रुवारी २०२३
सायं. ५ वा. श्री. अतुल खांडेकर, पुणे यांचे 'गायन' 
रात्री ९:३० वा. ह. भ. प. श्री. शरद दत्तदासबुवा घाग, नृसिंहवाडी यांचे सुश्राव्य कीर्तन'












भगवान विष्णु का स्वप्न 1

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भगवान विष्णु का स्वप्न
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एक बार भगवान नारायण अपने वैकुंठलोक में सोये हुए थे। स्वप्न में वे क्या देखते हैं कि करोड़ों चंद्रमाओं की कांतिवाले, त्रिशूल-डमरूधारी, स्वर्णाभरण-भूषित, सुरेंद्र वंदित, अणिमादि सिद्धिसेवित त्रिलोचन भगवान शिव प्रेम और आनंदातिरेक से उन्मत्त होकर उनके सामने नृत्य कर रहे हैं। 


शिव प्रेम नृत्य कर रहे हैं।




उन्हें देखकर भगवान विष्णु हर्ष-गद्गद हो सहसा शय्या पर उठकर बैठा गए और कुछ देर तक ध्यानस्थ बैठे रहे। उन्हें इस प्रकार बैठे देखकर श्रीलक्ष्मीजी उनसे पूछने लगीं कि ‘भगवन्! आपके इस प्रकार उठ बैठने का क्या कारण है?’ भगवान ने कुछ देर तक उनके इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया और आनंद में निमग्न हुए चुपचाप बैठे रहे। अंत में कुछ स्वस्थ होने पर वे गद्गद-कंठ से इस प्रकार बोले - ‘हे देवि! मैंने अभी स्वप्न में भगवान श्रीमहेश्वर का दर्शन किया है, उनकी छबि ऐसी अपूर्व आनंदमय एवं मनोहर थी कि देखते ही बनती थी।


 मालूम होता है, शंकर ने मुझे स्मरण किया है। अहोभाग्य्! चलो, कैलास में चलकर हम लोग महादेव के दर्शन करें।’



यह कहकर दोनों कैलास की ओर चल दिये। मुश्किल से आधी दूर गये होंगे कि देखते हैं भगरान शंकर स्वयं गिरिजा के साथ उनकी ओर चले आ रहे हैं। अब भगवान के आनंद का क्या ठिकाना? मानो घर बैठे निधि मिल गयी।पास आते ही दोनों परस्पर बड़े प्रेम से मिले। मानो प्रेम और आनंद का समुद्र उमड़ पड़ा। एक दूसरे को देखकर दोनों के नेत्रों से आनंदाश्रु बहने लगे और शरीर पुलकायमान हो गया। दोनों ही एक दूसरे से लिपटे हुए कुछ देर मूकवत् खड़े रहे।



 प्रश्नोत्तर होने पर मालूम हुआ कि शंकरजी को भी रात्रि में इसी प्रकार का स्वप्न हुआ कि मानो विष्णु भगवान को वे उसी रूप में देख रहे हैं, जिस रूप में वे अब उनके सामने खड़े थे। दोनों के स्वप्न का वृत्तांत अवगत होने पर दोनों ही लगे एक दूसरे से अपने यहां लिवा जाने का आग्रह करने। नारायण कहते वैकुंठ चलो और शंभु कहते कैलास की ओर प्रस्थान कीजिए। दोनों के आग्रह में इतना अलौकिक प्रेम था कि निर्णय करना कठिन हो गया कि कहां चला जाय। इतने में ही क्या देखते हैं कि वीणा बजाते, हरिगुण गाते नारदजी कहीं से आ निकले। बस, फिर क्या था? लगे दोनों ही उनसे निर्णय कराने कि कहां चला जाय? बेचारे नारदजी तो स्वयं परेशान थे उस अलौकिक मिलन को देखकर ।


वे तो स्वयं अपनी सुध-बुध भूल गए और लगे मस्त होकर दोनों का गुणगान करने। अब निर्णय कौन करे? अंत में यह तय हुआ कि भगवती उमा जो कह दें वही ठीक है। भगवती उमा पहले तो कुछ देर चुप रहीं। अंत में वे दोनों को लक्ष्य करके बोलीं - ‘हे नाथ! हे नारायण! आप लोगों के निश्चल, अनन्य एवं अलौकिक प्रेम को देखकर तो यही समझ में आता है कि आपके निवास-स्थान अलग-अलग नहीं हैं, जो कैलास है वही वैकुण्ठ है और जो वैकुण्ठ है वही कैलास है, केवल नाम में ही भेद है। यही नहीं, मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि आपकी आत्मा भी एक ही है, केवल शरीर देखने में दो हैं। और तो और मुझे तो अब यह स्पष्ट दीखने लगा है कि आपकी भार्याएं भी एक ही हैं, दो नहीं। 



जो मैं हूं वही श्रीलक्ष्मी हैं और जो श्रीलक्ष्मी हैं वही मैं हूं। केवल इतना ही नहीं, मेरी तो अब यह दृढ़ धारणा हो गई है कि आप लोगों में से एक के प्रति जो द्वेष करता है, वह मानो दूसरे के प्रति ही करता है, एक की जो पूजा करता है, वह स्वभाविक ही दूसरे की भी करता है और जो एक को अपूज्य मानता है, वह दूसरे की भी पूजा नहीं करता। मैं तो यह समझती हूं कि आप दोनों में जो भेद मानता है, उसका चिरकाल तक घोर पतन होता है। 


मैं देखती कि आप मुझे इस प्रसंग में अपना मध्यस्थ बनाकर मानो मेरी प्रवंचना कर रहे हैं, मुझे चक्कर में डाल रहे हैं, मुझे भुला रहे हैं। अब मेरी यह प्रार्थना है कि आप लोग दोनों ही अपने-अपने लोक को पधारिए। श्रीविष्णु यह समझें कि हम शिवरूप से वैकुण्ठ जा रहे हैं और महेश्वर यह मानें कि हम विष्णुरूप से कैलास गमन कर रहे हैं।’

इस उत्तर को सुनकर दोनों परम प्रसन्न हुए और भगवती उमा की प्रशंसा करते हुए दोनों प्रणामालिंगन के अनंतर हर्षित हो अपने-अपने लोक को चले गए।

लौटकर जब श्रीविष्णु वैकुण्ठ पहुंचे तो श्रीलक्ष्मी जी उनसे पूछने लगीं कि ‘प्रभो! सबसे अधिक प्रिय आपको कौन हैं?’ इस पर भगवान बोले - ‘प्रिये! मेरे प्रियतम केवल श्रीशंकर हैं। देहधारियों को अपने देह की भांति वे मुझे अकारण ही प्रिय हैं। एक बार मैं और शंकर दोनों ही पृथ्वी पर घूमने निकले। मैं अपने प्रियतम की खोज में इस आशय से निकला कि मेरी ही तरह जो अपने प्रियतम की खोज में देश-देशांतर में भटक रहा होगा, वही मुझे अकारण प्रिय होगा। थोड़ी देर के बाद मेरी श्रीशंकरजी से भेंट जो गयी। ज्यों ही हम लोगों की चार आंखें हुईं कि हम लोग पूर्वजन्मार्जित विज्ञा की भांति एक्-दूसरे के प्रति आकृष्ट हो गए। ‘वास्तव में मैं ही जनार्दन हूं और मैं ही महादेव हूं। अलग-अलग दो घड़ों में रखे हुए जल की भांति मुझमें और उनमें कोई अंतर नहीं है। शंकरजी के अतिरिक्त शिव की अर्चा करने वाला शिवभक्त भी मुझे अत्यंत प्रिय है। इसके विपरीत जो शिव की पूजा नहीं करते, वे मुझे कदापि प्रिय नहीं हो सकते।





साईं बाबा के इस विशेष मंत्र का गुरुवार को कर लें जाप, जाग उठेगी सोई किस्मत


साईं के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं जाता, बस सच्चे मन से उन्हें याद कर लेना ही काफी होता है। साईं की विशेष पूजा का दिन गुरुवार होता है और इस दिन यदि भक्त साईं के विशेष मंत्रों का जाप कर लें तो उन्हें जीवन में जितने सुख मिलने हैं, उससे कहीं ज्यादा खुशियां मिलती हैं। साईं के ये मंत्र इंसान को निराशा, कष्ट और नकारात्मकता से दूर करते हैं। इन मंत्रों को जपने मात्र से इंसान के मन-मस्तिष्क में ऊर्जा व शक्ति का संचार होता है। इससे वह स्वयं कठिन परिस्थितियों से बाहर निकलने की राह खोज लेता है।

सुख-शांति और समृद्धि देती है साईं की पूजा

सुख-शांति और समृद्धि के लिए गुरुवार के दिन साईं बाबा की पूजा करने का बहुत महत्व होता है। गुरुवार का दिन गुरु का होता है और वह स्वयं गुरु हैं। इसलिए इस दिन उनकी पूजा कष्टों को हर कर इंसान को सुख प्रदान करने वाली होती है। साईं अपने चमत्कार के लिए जाने जाते हैं और उनके ये चमत्कार कलयुग में भी देखने को मिलते हैं। इसलिए साईं की कृपा के लिए उनके मंत्रों को निर्मल मन के साथ जपना चाहिए।
साईं ने कहा था, सबका मालिक एक है

सबका मालिक एक है, साईं ने कहा था। साईं ने अपने भक्तों से कहा था कि ईश्वर को पाने, उनकी शरण में जाने के मार्ग सबके अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन लोग जिसे पाना चाहते हैं वह एक ही है। सबका मालिक एक है। वह हर धर्म को मानने वाले थे और हर धर्म के लोग उनके भक्त थे। साईं ने भक्तों से कहा था कि वह परलोक में रह कर भी भक्तों के दर्द को दूर करने के लिए हमेशा आते रहेंगे। यही कारण है कि उनकी समाधि की सीढ़ियों पर पैर रखते ही भक्तों के कष्ट भी दूर होने लगते हैं।

तो आइए गुरुवार को साईं के इन मंत्रों का जाप जरूर करें

ॐ साईं राम
ॐ साईं गुरुदेवाय नम:
ॐ साईं देवाय नम:
ॐ शिर्डी देवाय नम:
ॐ समाधिदेवाय नम:
ॐ सर्वदेवाय रूपाय नम:
ॐ शिर्डी वासाय विद्महे सच्चिदानंदाय धीमहि तन्नो साईं प्रचोदयात
ॐ अजर अमराय नम:
ॐ मालिकाय नम:
ॐ सर्वज्ञा सर्व देवता स्वरूप अवतारा। 
ॐ साईं नमो नम:, श्री साईं नमो नम:, जय जय साईं नमो नम:, सद्गुरु साईं नमो नम

साईं के ये मंत्र आपके जीवन में खुशियों का संचार कर मानसिक परेशानी से दिलाएंगे निजात
🌹🙏
!!श्री सद्गुरू साईनाथार्पणमस्तु ! शुभं भवतु !! 🙏🌹🙏🌹 साई दत्त🙏🌹🙏🌹🙏🌹



अंगारकी चतुर्थी 10 जनवरी 2023को, 27 सालों बाद सर्वार्थ सिद्धि योग में मनेगी

 


अंगारकी चतुर्थी 10 जनवरी 2023को, 27 सालों बाद सर्वार्थ सिद्धि योग में मनेगी


मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकटा चौथ या संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस बार संकष्टि चतुर्थी 10 जनवरी मंगलवार को होने से अंगारकी चतुर्थी कहलाएगी। वर्ष भर में आने वाली चतुर्थी में यह चतुर्थी सबसे बड़ी है। मंगलवार को नक्षत्र की अनुकुलता के कारण चतुर्थी सर्वार्थ सिद्धि योग में आ रही है। इस योग में की गई साधना उपासना मनोवांछित फल प्रदान करती है।


मंगलवार के दिन आश्लेषा नक्षत्र होने से सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण होता है। साथ ही मंगलवार के दिन चतुर्थी आने से अंगारकी चतुर्थी का योग बनता है। इस दौरान कन्या अथवा बालक के शुभ विवाह में कोई बाधा आ रही हो तो इस दिन का उपयोग कर लेने से अर्थात भगवान गणपति माता चौथ का पूजन करने से संकट बाधा निवृत्त हो जाते है। कार्य सिद्ध होता है। पं. अमर डिब्बेवाला ने बताया कि 12 मास में आने वाली 24 चतुर्थीयों में 12 कृष्ण पक्ष की और 12 शुक्ल पक्ष की चतुर्थी होती है। कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। माघ मास में आने वाली चतुर्थी बड़ी मानी जाती है। इस दृष्टि से इस व्रत को महिलाएं करती है।

   अंगारकी चतुर्थी का समय


    मंगलवार, जनवरी 10, 2023 को

 संकष्टी के दिन चन्द्रोदय 🌙 - 09:04 पी एम



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चतुर्थी मंगलवार को होने से यह अंगारकी चतुर्थी होगी। इस दिन प्रसिद्ध श्री मंगलनाथ मंदिर में विवाह आदि में आ रही बाधा दूर करने के लिए भगवान मंगलनाथ की भात पूजन कराने का विधान है। देशभर के भक्त इस दिन श्री मंगलनाथ और शिप्रा तट स्थित श्री अंगारेश्वर मंदिर में पूजन कराने पहुंचते है। इसी तरह श्री चिंतामन गणेश मंदिर, मंछामन गणेश मंदिर, सिद्धिविनायक गणेश मंदिरों में भगवान गणेश का पूजन करने के लिए श्रद्धालु उमड़ेगें।


नक्षत्रों की गणना में वर्षों बाद बना संयोग


इस बार अश्लेषा नक्षत्र में मंगलवार के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग में अंगारकी चतुर्थी होने से यह विशेष प्रबल हो गई है। इस तरह का संयोग नक्षत्र मंडल की गणना से देखें तो 27 वर्ष के बाद बनता है। इस लिए व्रत के दिन विशिष्ट अनुष्ठान करना चाहिए।










साईबाबा का कष्ट निवारण मंत्र

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साईं कष्ट निवारण मंत्र का नियमित जाप करते रहने से सुख, समृद्धि और सेहत से भरपूर रहते हैं। आप किसी भी दुःख तकलीफ में हो या ना हो इस मंत्र का जाप करना चाहिए। साईं कष्ट निवारण मंत्र पढ़ते हुए पूरी तरह से साईं का ध्यान करें और साईमय हो जाये। इससे आपको साईं बाबा के पास होने की अनुभूति होगी और आप स्वयं साईं से अपनी बात कह रहे हैं ऐसा एहसास होगा।

श्री सच्चिदानंद समर्थ सद्गुरू साईंनाथ महाराज की जय




कष्टों की काली छाया दुखदायी है, जीवन में घोर उदासी लायी है l



संकट को तालो साईं दुहाई है, तेरे सिवा न कोई सहाई है l



मेरे मन तेरी मूरत समाई है, हर पल हर शन महिमा गायी है l



घर मेरे कष्टों की आंधी आई है,आपने क्यूँ मेरी सुध भुलाई है l



तुम भोले नाथ हो दया निधान हो,तुम हनुमान हो तुम बलवान हो l



तुम्ही राम और श्याम हो,सारे जग त में तुम सबसे महान हो l



तुम्ही महाकाली तुम्ही माँ शारदे,करता हूँ प्रार्थना भव से तार दे l



तुम्ही मोहमद हो गरीब नवाज़ हो,नानक की बानी में ईसा के साथ हो l



तुम्ही दिगम्बर तुम्ही कबीर हो,हो बुध तुम्ही और महावीर हो l



सारे जगत का तुम्ही आधार हो,निराकार भी और साकार हो l



करता हूँ वंदना प्रेम विशवास से,सुनो साईं अल्लाह के वास्ते l



अधरों पे मेरे नहीं मुस्कान है,घर मेरा बनने लगा शमशान है l



रहम नज़र करो उज्ढ़े वीरान पे,जिंदगी संवरेगी एक वरदान से l



पापों की धुप से तन लगा हारने,आपका यह दास लगा पुकारने l



आपने सदा ही लाज बचाई है,देर न हो जाये मन शंकाई है l



धीरे-धीरे धीरज ही खोता है,मन में बसा विशवास ही रोता है l



मेरी कल्पना साकार कर दो,सूनी जिंदगी में रंग भर दो l



ढोते-ढोते पापों का भार जिंदगी से,मैं गया हार जिंदगी से l



नाथ अवगुण अब तो बिसारो,कष्टों की लहर से आके उबारो l



करता हूँ पाप मैं पापों की खान हूँ,ज्ञानी तुम ज्ञानेश्वर मैं अज्ञान हूँ l



करता हूँ पग-पग पर पापों की भूल मैं,तार दो जीवन ये चरणों की धूल से l



तुमने ऊजरा हुआ घर बसाया,पानी से दीपक भी तुमने जलाया l



तुमने ही शिरडी को धाम बनाया,छोटे से गाँव में स्वर्ग सजाया l



कष्ट पाप श्राप उतारो,प्रेम दया दृष्टि से निहारो l



आपका दास हूँ ऐसे न टालिए,गिरने लगा हूँ साईं संभालिये l



साईजी बालक मैं अनाथ हूँ,तेरे भरोसे रहता दिन रात हूँ l



जैसा भी हूँ , हूँ तो आपका,कीजे निवारण मेरे संताप का l



तू है सवेरा और मैं रात हूँ,मेल नहीं कोई फिर भी साथ हूँ l



साईं मुझसे मुख न मोड़ो,बीच मझधार अकेला न छोड़ो l



आपके चरणों में बसे प्राण है,तेरे वचन मेरे गुरु समान है l



आपकी राहों पे चलता दास है,ख़ुशी नहीं कोई जीवन उदास है l



आंसू की धारा में डूबता किनारा,जिंदगी में दर्द , नहीं गुज़ारा l



लगाया चमन तो फूल खिलायो,फूल खिले है तो खुशबू भी लायो l



कर दो इशारा तो बात बन जाये,जो किस्मत में नहीं वो मिल जाये l



बीता ज़माना यह गाके फ़साना,सरहदे ज़िन्दगी मौत तराना l



देर तो हो गयी है अंधेर ना हो,फ़िक्र मिले लकिन फरेब ना हो l



देके टालो या दामन बचा लो,हिलने लगी रहनुमाई संभालो l



तेरे दम पे अल्लाह की शान है,सूफी संतो का ये बयान है l



गरीबों की झोली में भर दो खजाना,ज़माने के वली करो ना बहाना l



दर के भिखारी है मोहताज है हम,शंहंशाये आलम करो कुछ करम l



तेरे खजाने में अल्लाह की रहमत,तुम सदगुरू साईं हो समरथ l



आये हो धरती पे देने सहारा,करने लगे क्यूँ हमसे किनारा l



जब तक ये ब्रह्मांड रहेगा,साईं तेरा नाम रहेगा l



चाँद सितारे तुम्हे पुकारेंगे,जन्मोजनम हम रास्ता निहारेंगे l



आत्मा बदलेगी चोले हज़ार,हम मिलते रहेंगे बारम्बार l



आपके कदमो में बैठे रहेंगे,दुखड़े दिल के कहते रहेंगे l



आपकी मर्जी है दो या ना दो,हम तो कहेंगे दामन ही भर दो l



तुम हो दाता हम है भिखारी,सुनते नहीं क्यूँ अर्ज़ हमारी l



अच्छा चलो एक बात बता दो,क्या नहीं तुम्हारे पास बता दो l



जो नहीं देना है इनकार कर दो,ख़तम ये आपस की तकरार कर दो l



लौट के खाली चला जायूँगा,फिर भी गुण तेरे गायूँगा l



जब तक काया है तब तक माया है,इसी में दुखो का मूल समाया है l



सबकुछ जान के अनजान हूँ मैं,अल्लाह की तू शान तेरी शान हूँ मैं l



तेरा करम सदा सब पे रहेगा,ये चक्र युग-युग चलता रहेगा l



जो प्राणी गायेगा साईं तेरा नाम,उसको मुक्ति मिले पहुंचे परम धाम l



ये मंत्र जो प्राणी नित दिन गायेंगे,राहू , केतु , शनि निकट ना आयेंगे l



टाल जायेंगे संकट सारे,घर में वास करें सुख सारे l



जो श्रधा से करेगा पठन,उस पर देव सभी हो प्रस्सन l



रोग समूल नष्ट हो जायेंगे,कष्ट निवारण मंत्र जो गायेंगे l



चिंता हरेगा निवारण जाप,पल में दूर हो सब पाप l



जो ये पुस्तक नित दिन बांचे,श्री लक्ष्मीजी घर उसके सदा विराजे l



ज्ञान , बुधि प्राणी वो पायेगा,कष्ट निवारण मंत्र जो धयायेगा l



ये मंत्र भक्तों कमाल करेगा,आई जो अनहोनी तो टाल देगा l



भूत-प्रेत भी रहेंगे दूर ,इस मंत्र में साईं शक्ति भरपूर l



जपते रहे जो मंत्र अगर,जादू-टोना भी हो बेअसर l



इस मंत्र में सब गुण समाये,ना हो भरोसा तो आजमाए l



ये मंत्र साईं वचन ही जानो,सवयं अमल कर सत्य पहचानो l



संशय ना लाना विशवास जगाना,ये मंत्र सुखों का है खज़ाना l




 









जय श्री साईं जय श्री साईं श्री साईं l



अनंत कोटि ब्रह्माण्ड नायक राजाधिराज योगीराज परब्रह्म सच्चिदानंद सद्गुरु साईनाथ महाराज की जय।