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प्रेम का मतलब कोई रिश्ता या संबंध बन जाना नहीं,


प्रेम का मतलब कोई रिश्ता या संबंध बन जाना नहीं, 

"प्रेम का मतलब कोई रिश्ता या संबंध बन जाना नहीं,
प्रेम का तो मतलब है-
कण कण में बिखरकर आनंदित हो जाना|"
**********************
इसका अच्छा उदाहरण है हमारा शरीर|हम अपने पूरे शरीर में फैले हुए हैं|शरीर के कण कण में बिखरकर आनंदित हैं|जैसे कण कण में भगवान वैसे शरीर के कण कण में हम|कोई अंग पराया नहीं|चोट लग जाय तो कैसे प्रेम से सहलाते हैं|

ऐसा भी होता कि किसी और के शरीर को चोट पहुंचायी जाय|यह जडता है|व्यक्ति अपने शरीर में ही पूर्णता से रहे तो काफी है|जो ब्रह्माण्ड में है वही पिंड में है|इसमें रम जाना हमे साधना के शिखर तक पहुंचा सकता है|
यही ईश्वरीय प्रेम की अनुभूति करा सकता है जो ब्रह्माण्ड में व्याप्त है|वहाँ फिर कण कण में ईश्वरीय प्रेम समाया है|कृष्ण कहते हैं-मुझे सबका सुहृद् जाननेवाले को शांति हो जाती है|'

क्यों न हो, कुछ भी अलग है नहीं|यह ऐसा है जैसे हमारे हाथपांव में पृथकता बुद्धि आ जाय, वे सोचने लगें हमारे भीतर उनके प्रति प्रेम है या नहीं?
 
हम कहें-सुहृद् हैं हम, अकारण प्रेम करने वाले, हित करने वाले|
तो उन्हें शांति हो जाय कि ये तो हमारे अपने हैं, सचमुच हमारा हित चाहने वाले हैं|
हमसे कोई पूछे-क्या तुम्हें विश्वास है, क्या सचमुच तुम अपने शरीर के प्रत्येक अंग को चाहने वाले हो?
तो हम क्या कहेंगे? हम कहेंगे-इसमें विश्वास की क्या बात है! यह तो है ही|
इस तरह"सुहृदं सर्वभूतानाम्" कहने वाले कृष्ण कहेंगे-इसमें विश्वास की क्या बात है, यह सब मैं हूँ ही, मेरा अपना विस्तार है|अपने से दुराव कैसा?
यह समझ में आ जाय तो ईश्वर और ईश्वर का प्रेम प्रत्यक्ष है|
कृष्ण कहते हैं-"जो संपूर्ण भूतों में मुझे देखता है और संपूर्ण भूतों को मेरे अंतर्गत देखता है उसके लिए मैं अदृश्य नहीं होता हूँ और वह मेरे लिए अदृश्य नहीं होता|"
हम कहते हैं कहां छिपे हैं भगवान, दिखाई क्यों नहीं देते?
तो भगवान ही कहते हैं- मैं सबमें हूं, सब मुझमें है|'
यह बड़ी बात है|ईश्वर अंशी है तो अंश रुप में हम भी कह सकते हैं- मैं शरीर के सभी अंगों में हूँ, सभी अंग मुझमें हैं|'
यह व्यवस्था हर अंश में है|
पशु पक्षी के शरीरों में भी जो ईश्वर अंश मौजूद है वह उनके शरीरों के सभी अंगों में है, सभी अंग उसमें है|
इसका सीधा अर्थ है जैसे हम वैसे सब|यहाँ समझ की जरूरत पडती है|फिर किसीको भी हानि नहीं पहुंचाई जा सकती, फिर सबकी सेवा ही होती है|
जैसा आत्म प्रेम मुझमें है वैसा आत्म प्रेम सभी के अंदर है|कौन करता है आत्म घृणा? करता हो तो वह मनोरोगी है|आत्म घृणा भी वह आत्म प्रेम के कारण करता है|कहीं स्वयं के लिए तो प्रेम है ही भीतर|
इसका विस्तार होना चाहिए, मनोरोगी विस्तार नहीं कर पाता|वह मनके किसी खांचे में कैद जैसा है|एक सामान्य व्यक्ति ठीक है वह अपने पूरे शरीर से प्रेम करता है|
वह भी अधूरा है जब तक वह पूरे विश्व के कण कण में बिखरकर आनंदित नहीं हो जाता|उसकी हृदय ग्रंथि विलीन हो जाती है, हृदय सर्वत्र व्याप्त हो जाता है|
मनुष्य जो इतने कष्ट पा रहा है उसका कारण मैं मेरा के रूप में हृदय ग्रंथि ही है|
मैं अलग, मेरा अलग|
जब वह प्रेम के बारे में सुनता है तो वह संभव प्रतीत नहीं होता क्यों कि-
"प्रेम चिरकाल तक कष्ट सहन करता है और दयालु है|प्रेम ईर्ष्या नहीं करता|प्रेम अपनी बडाई नहीं करता, न फूल कर कुप्पा होता है|प्रेम अपनी भलाई नहीं चाहता, उद्विग्न नहीं होता, न बुरा सोचता|वह सब बातें सह लेता है, सब बातों पर विश्वास करता है, सब बातों की आशा रखता है और सब बातों में धैर्य रखता है|प्रेम कभी असफल नहीं होता|"

यहाँ तक कहते हैं कि-
"ईश्वरीय विधान भी प्रेम के आगे नतमस्तक है|"
ग्रहों से विचलित होने वाले बहुत हैं|शनि की साढेसाती सुनकर बहुत लोग घबराते हैं|उनके जप तप शुरू हो जाते हैं|साढेसाती न सही, कोई और कष्ट सही लेकिन आदमी घबराता सिर्फ इसलिए है क्योंकि प्रेम नहीं है|
अहंकार का सुख जिसे चाहिए वह प्रेम से दूर ही रहता है|उसके लिए प्रेम भी किसी पर मेहरबानी करने के अर्थ में है|ऐसा अहं सुख, दुख मे बदले बिना नहीं रहता|सुखदुख के सारे द्वंद्व अहंकार को लेकर हैं|
प्रेम निर्द्वन्द्व है|

"प्रेम संसार का स्थायी सत्य है|प्रेम अंत:करण का अमृत है जो विकसित होकर विश्व प्रेम और प्राणीमात्र तक फैल जाता है|प्रेम में मनुष्य की जीवनधारा बदलने की शक्ति होती है|प्रेम बेगानों को अपना और शत्रुओं को भी मित्र बना लेता है|शुद्ध प्रेम के लिए दुनिया में कोई बात असंभव नहीं है|"

अगर स्वार्थी बुद्धि से ही सही, प्रेम के फायदे जानकर भी कोई इस दिशा में कदम रखता है तो सारे दुख, दुर्भाग्य हाथ जोडकर खडे हो जाते हैं|आदमी जिनके वश में होता है, वे आदमी के वश में हो जाते हैं|
हो सकता है मुझमें भी प्रेम न हो तथा दुख अप्रिय लगता हो तब मेरे लिए भी यही सत्य है|ऐसा नहीं कि यह केवल पाठकों के लिए ही है|
मुझमें प्रेम नहीं है तो कठिन तो है लेकिन इसका महत्व समझ में आ जाना बहुत बड़ी बात है|यह स्वतंत्र करने लगता है फिर कोई मुझसे प्रेम न करे, सारा संसार मुझसे प्रेम न करे तो भी कोई फर्क नहीं पडता क्यों कि मुझे समझ में आ चुका है|

सदुपदेश देने वाले की यह तकलीफ है, उसे अपेक्षा हो जाती है कि लोग उसे मानें|
न मानें तो पीड़ा होती है|
होना यह चाहिए कि वह अपने ज्ञान द्वारा अपने को स्वतंत्र करे फिर जिसका जैसा है ठीक है|सात्विक, राजसी, तामसी बुद्धि में बंटे बहुत लोग हैं|कोई माने उसकी मर्जी, न माने उसकी मर्जी|वह हमारा विषय नहीं होना चाहिए|हमें समझ में आ गया कि प्रेम से व्यक्तिगत, सामूहिक कितने बड़े लाभ हैं तो फिर ठीक है|कठिन होते हुए भी कोशिश होगी जैसे एक सामान्य व्यक्ति भी कार्य कठिन होने पर भी कोशिश करता है , उसके फायदे जो हैं|
इसलिए सांसारिक स्वार्थ की दृष्टि से ही सही जो आध्यात्मिक मूल्य लाभ देने वाले हैं उन्हें जीवन में अपनाने की कोशिश करनी चाहिए|लाभ समझ में जिसके आया वह कोशिश करता ही है उसे प्रेरणा देनी नहीं पडती, वह खुद प्रेरित होता है|स्वार्थ क्या नहीं करता!
 
प्रेम ही प्रार्थना है|आदमी भय, चिंता, शंका की यातना झेलता रहता है, उसे याद ही नहीं आती कि सब सुखी हों ऐसा भाव उसके हृदय में हों तो इन सभी रोगों से आसानी से मुक्ति पायी जा सकती है|
तब प्रेम, राग-मोह- आसक्ति का रुप भी नहीं लेता|
प्रेम के पर्याय के रूप में करुणा, दया, वात्सल्य, स्नेह, सहानुभूति, सेवा, परोपकार, त्याग, क्षमा आदि ठीक होते हैं|बेठीक है तो वह है इनकी अनिच्छा|इस अनिच्छा के कारण घोर असंतुलन पैदा होता है|और आदमी अनसुलझे प्रश्नों में ही अपनी जीवनयात्रा जारी रखता है|

कठिन है उसमें कोई हर्ज नहीं, प्रयत्न से कठिन भी सरल होता है लेकिन अनिच्छा है, अस्वीकार है तो फिर आदमी खुद ही अपने हित का द्वार बंद कर लेता है|वह अपना ही शत्रु होता है, और इस भ्रम में रहता है कि वह अपना मित्र है|
ऐसा आदमी "सुधारक", "उद्धारक" भी हो जाता है परन्तु उद्धार तो वही करता है जो किसी को दोषी मानता ही नहीं|
सभी को उससे राहत होती है|रास्ते में आयी रुकावट दूर हो जाती है|
खुद कृष्ण दोषी नहीं मानते|वे कहते हैं-जीव तो कर्ता है ही नहीं, कर्ता तो प्रकृति के गुण हैं|वह अज्ञानवश स्वयं को कर्ता मान लेता है|'
उस दृष्टि से भूल, बेहोशी, अज्ञान, सत्य का पता न होना ही दोष है|मगर पता ही नहीं है तो उसे दोषी कैसे माना जा सकता है?
इसका अर्थ है-

"दुनिया में कोई भी बुरा नहीं है|सभी अपने मूल रूप में भले हैं|"
भला जानने पर भला करना संभव है, प्रेम संभव है|









मकर संक्रांति 15/01/2023 का पुण्य और महापुण्य काल समय





*🕉️ मकर सक्रांति 🕉️* 
 *15 जनवरी 2023 रविवार* 
 
*इस साल मकर संक्रांति का त्यौहार 15 जनवरी 2023 रविवार के दिन मनाया जाएगा।* 

 ये सूर्य की उपासना का पर्व है, सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने पर खरमास की भी समाप्ति हो जाती है और सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं।
 पुराणों के अनुसार मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण होते हैं और ऐसे शुभ संयोग में मकर संक्रांति पर स्नान, दान, मंत्र जप और सूर्य उपासना से अन्य दिनों में किए गए दान-धर्म से अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।।

*🔯आइए जानते हैं मकर संक्रांति का पुण्य और महापुण्य काल समय-:* 

*सूर्य का मकर राशि में प्रवेश-:* 
14 जनवरी 2023 शनिवार को
रात 08.57 पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे।

*मकर संक्रांति 15/01/2023 का पुण्य और महापुण्य काल समय 

*🔯 पुण्य-महापुण्य काल का महत्व-:* 
मकर संक्रांति पर पुण्य और महापुण्य काल का विशेष महत्व है. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन से स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं. मकर संक्रांति के पुण्य और महापुण्य काल में गंगा स्नान, सूर्योपासना,दान, मंत्र जप करने व्यक्ति के जन्मों के पाप धुल जाते है।

*स्नान---:* 
मकर सक्रांति वाले दिन सबसे पहले प्रातः किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए, यदि यह संभव ना हो सके तो अपने नहाने के जल में थोड़ा गंगाजल डालकर स्नान करें।।

*सूर्योपासना---:* 
प्रातः स्नान के बाद उगते हुए सूर्य नारायण को तांबे के पात्र में जल, गुड, लाल पुष्प, गुलाब की पत्तियां, कुमकुम, अक्षत आदि मिलाकर जल अर्पित करना चाहिए।

 *गायत्री मंत्र जप--:* 
 सूर्य उपासना के बाद में कुछ देर आसन पर बैठकर गायत्री मंत्र के जप करने चाहिए, अपने इष्ट देवी- देवताओं की भी उपासना करें।।

 *गाय के लिए दान---:* 
पूजा उपासना से उठने के बाद गाय के लिए कुछ दान अवश्य निकालें जैसे- गुड, चारा इत्यादि।

*पितरों को भी करे याद-:* 
इस दिन अपने पूर्वजों को प्रणाम करना ना भूलें, उनके निमित्त भी कुछ दान अवश्य निकालें। 
इस दिन पितरों को तर्पण करना भी शुभ होता है। इससे पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

*गरीब व जरूरतमंदों के लिए दान-:* 
इस दिन गरीब व जरूरतमंदों को जूते, चप्पल, (चप्पल-जूते चमड़े के नहीं होने चाहिए) अन्न, तिल, गुड़, चावल, मूंग, गेहूं, वस्त्र, कंबल, का दान करें। ऐसा करने से शनि और सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है।।

*परंपराओं का भी रखें ध्यान-:*
 मकर सक्रांति का त्यौहार मनाने में अलग-अलग क्षेत्रों में अलग- अलग परंपराएं हैं, अतः आप अपनी परंपराओं का भी ध्यान रखें। अर्थात अपने क्षेत्रीय रीति-रिवाजों के अनुसार मकर संक्रांति का त्यौहार मनाए।।
 
*गायत्री मंत्र-:* 
इस साल मकर संक्रांति बेहद खास मानी जा रही है, क्योंकि रविवार और मकर संक्रांति दोनों ही सूर्य को समर्पित है। इस दिन गायत्री मंत्र जप व गायत्री हवन करना विशेष लाभकारी रहेगा।।
सूर्य गायत्री मंत्र का जाप भगवान सूर्य देव के लिया किया जाता है। इस मंत्र के जाप से सूर्य भगवान को प्रसन्न और उनका आशीर्वाद पाने के लिया किया जाता है। इस मंत्र का जाप सुबह सुबह करनी चाहिए। इसके अधिकतम प्रभाव के लिए इस गायत्री मंत्र का मतलब समझना चाहिए।

ऊँ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्नो सूर्यः प्रचोदयत।।

ओम, मुझे सूर्य देव का ध्यान करें,
ओह, दिन के निर्माता, मुझे उच्च बुद्धि दें,
और सूर्य देव मेरे मन को रोशन करें।

मेरे सम्पूर्ण परिवार की तरफ से सभी को मकर संक्रांति (खिचड़ी संक्रांति) पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं हम भगवान सूर्य नारायण जी से प्रार्थना करते हैं की जिस प्रकार मकर राशि में सूर्य नारायण का तेज बढता है उसी प्रकार सम्पूर्ण विश्व का तेज बढ़े सभी लोग स्वस्थ सुंदर और दीर्घायु हो यही कामना भगवान सूर्य नारायण जी से करता हुं।